Saturday, April 27, 2024

हनुमान चालीसा hanuman chalisa hindi lyrics pdf

 श्री हनुमान चालीसा

--------- दोहा ---------

श्रीगुरु-चरन-सरोज-रज

निज-मन-मुकुर सुधारि ।

बरनउँ रघुबर-बिमल-जस

जो दायक फल चारि ॥


बुद्धि-हीन तनु जानिकै

सुमिरौं पवनकुमार ।

बल बुधि बिद्या देहु मोहिं

हरहु कलेश बिकार ॥


--------- चौपाई ---------

जय हनुमान ज्ञान-गुण-सागर ।

जय कपीश तिहुँ लोक उजागर ॥ १ ॥


राम-दूत अतुलित-बल-धामा ।

अंजनिपुत्र - पवनसुत - नामा ॥ २ ॥


महाबीर बिक्रम बजरंगी ।

कुमति-निवार सुमति के संगी ॥ ३ ॥


कंचन-बरन बिराज सुबेसा ।

कानन कुंडल कुंचित केसा ॥ ४ ॥


हाथ बज्र अरु ध्वजा बिराजै ।

काँधे मूँज-जनेऊ छाजै ॥ ५ ॥


शंकर स्वयं केसरीनंदन ।

तेज प्रताप महा जग-बंदन ॥ ६ ॥


बिद्यावान गुणी अति चातुर ।

राम-काज करिबे को आतुर ॥ ७ ॥


प्रभु-चरित्र सुनिबे को रसिया ।

राम-लखन-सीता-मन-बसिया ॥ ८ ॥


सूक्ष्म रूप धरि सियहिं दिखावा ।

बिकट रूप धरि लंक जरावा ॥ ९ ॥


भीम रूप धरि असुर सँहारे ।

रामचंद्र के काज सँवारे ॥ १० ॥


लाय सँजीवनि लखन जियाये ।

श्रीरघुबीर हरषि उर लाये ॥ ११ ॥


रघुपति कीन्ही बहुत बड़ाई ।

तुम मम प्रिय भरतहिं सम भाई ॥ १२ ॥


सहसबदन तुम्हरो जस गावैं ।

अस कहि श्रीपति कंठ लगावैं ॥ १३ ॥


सनकादिक ब्रह्मादि मुनीशा ।

नारद सारद सहित अहीशा ॥ १४ ॥


जम कुबेर दिगपाल जहाँ ते ।

कबि कोबिद कहि सकैं कहाँ ते ॥ १५ ॥


तुम उपकार सुग्रीवहिं कीन्हा ।

राम मिलाय राज-पद दीन्हा ॥ १६ ॥


तुम्हरो मंत्र बिभीषन माना ।

लंकेश्वर भए सब जग जाना ॥ १७ ॥


जुग सहस्र जोजन पर भानू ।

लील्यो ताहि मधुर फल जानू ॥ १८ ॥


प्रभु-मुद्रिका मेलि मुख माहीं ।

जलधि लाँघि गये अचरज नाहीं ॥ १९ ॥


दुर्गम काज जगत के जे ते ।

सुगम अनुग्रह तुम्हरे ते ते ॥ २० ॥


राम-दुआरे तुम रखवारे ।

होत न आज्ञा बिनु पैसारे ॥ २१ ॥


सब सुख लहहिं तुम्हारी शरना ।

तुम रक्षक काहू को डर ना ॥ २२ ॥


आपन तेज सम्हारो आपे ।

तीनौं लोक हाँक ते काँपे ॥ २३ ॥


भूत पिशाच निकट नहिं आवै ।

महाबीर जब नाम सुनावै ॥ २४ ॥


नासै रोग हरै सब पीरा ।

जपत निरंतर हनुमत बीरा ॥ २५ ॥


संकट तें हनुमान छुड़ावै ।

मन क्रम बचन ध्यान जो लावै ॥ २६ ॥


सब-पर राम राय-सिरताजा ।

तिन के काज सकल तुम साजा ॥ २७ ॥


और मनोरथ जो कोइ लावै ।

तासु अमित जीवन फल पावै ॥ २८ ॥


चारिउ जुग परताप तुम्हारा ।

है परसिद्ध जगत-उजियारा ॥ २९ ॥


साधु संत के तुम रखवारे ।

असुर-निकंदन राम-दुलारे ॥ ३० ॥


अष्ट सिद्धि नव निधि के दाता ।

अस बर दीन्ह जानकी माता ॥ ३१ ॥


राम-रसायन तुम्हरे पासा ।

सादर हे रघुपति के दासा ॥ ३२ ॥


तुम्हरे भजन राम को पावै ।

जनम जनम के दुख बिसरावै ॥ ३३ ॥


अंत-काल रघुबर-पुर जाई ।

जहाँ जन्म हरि-भगत कहाई ॥ ३४ ॥


और देवता चित्त न धरई ।

हनुमत सेइ सर्बसुख करई ॥ ३५ ॥


संकट कटैमिटै सब पीरा ।

जो सुमिरै हनुमत बलबीरा ॥ ३६ ॥


जय जय जय हनुमान गोसाईं ।

कृपा करहु गुरुदेव की नाईं ॥ ३७ ॥


यह सत बार पाठ कर जोई ।

छूटहिं बंदि महा सुख होई ॥ ३८ ॥


जो यह पढ़ै हनुमान-चलीसा ।

होय सिद्धि साखी गौरीसा ॥ ३९ ॥


तुलसीदास सदा हरि-चेरा ।

कीजै नाथ हृदय महँ डेरा ॥ ४० ॥


--------- दोहा ---------

पवनतनय संकट-हरन,

मंगल-मूरति-रूप ।

राम लखन सीता सहित,

हृदय बसहु सुर-भूप ॥


सियावर रामचंद्र की जय ।

पवनसुत हनुमान की जय ।

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